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धर्म किसे कहते है|धर्म का अर्थ और लक्षण ; Dharm Kise Kahate Hain|Dharm Ka Arth Aur Lakshan

धर्म किसे कहते है|धर्म का अर्थ और लक्षण ; Dharm Kise Kahate Hain|Dharm Ka Arth Aur Lakshan

 नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारे वेबसाइट rst field.com पर दोस्तों आज हम बात करने वाले हैं धर्म के विषय में की धर्म किसे कहते हैं, धर्म का अर्थ क्या होता है, धर्म के लक्षण, मानव धर्म क्या है, धर्म कितने प्रकार का होता है और भी धर्म के बारे में बहुत कुछ तो सभी जानकारी प्राप्त करने के लिए इस आर्टिकल को पूरा पढ़ेंं तभी आपको यह  जानकारी मिल पाएगी तो चलिए शुरू करते हैं

धर्म किसे कहते है|धर्म का अर्थ और लक्षण ; Dharm Kise Kahate Hain|Dharm Ka Arth Aur Lakshan

जब मनुष्य का जन्म होता है उसी समय उसके ऊपर चार जिम्मेवारी को सौंप दिया जाता है धर्म अर्थ काम मोक्ष सबसे पहले धर्म है। हर किसी के जीवन में धर्म प्रधान होना चाहिए ऐसा शास्त्रों में लेख है  धर्म का सार्थक अर्थ होता है बंधन जब मनुष्य ईश्वर से अपना संबंध स्थापित करता है उसे धर्म कहते हैं धर्म सभी मनुष्य के हृदय में होता है किसी में कम तो किसी में ज्यादा धर्म से हमें उचित अनुचित सही गलत का बोध होता है  धर्म हमें किसी अलौकिक शक्ति का बोध कराता है जिससे हमें उसके प्रति श्रद्धा का भाव उत्पन्न होता है और हम उसे प्रसन्न करने के लिए पूजा पाठ करते हैं वही धर्म कहलाता है

धर्म कितने प्रकार का होता है(Dharm kitne prakar ka hota hai)

संसार में तो बहुत से धर्म मौजूद जैसे जैन धर्म बौद्ध धर्म इस्लाम धर्म हिंदू धर्म लेकिन समाज के एकीकरण को ध्यान रखते हैं धर्म को दो भागों में बांटा गया है

  1. स्वाभाविक धर्म
  2. भागवत धर्म

स्वाभाविक धर्म किसे कहते हैं?(swabhavik Dharm kise kahate Hain)

वह धन जिसमें मनुष्य अपने जरूरतों के लिए धर्म स्थापना करता है अस्वाभाविक धर्म कहलाता है जैसे घर मकान खुशी काम व्यापार शिक्षा

स्वाभाविक धर्म का एक सरल अर्थ यह भी है कि जिसमें मनुष्य अपने जरूरतों के लिए धर्म का अनुष्ठान करता है या धर्मशील जीवन जीता है वह धर्म स्वाभाविक धर्म कहलाता है

भागवत धर्म किसे कहते हैं? (Bhagwat Dharm kise kahate Hain)

जैसा कि शास्त्रों में आप लोगों ने भी पढ़ा होगा कि मनुष्य को 8400000 योनि से निकलकर तब मनुष्य का तन प्राप्त होता है जहां पर मनुष्य धर्म कर्म एवं अच्छे काम करके मुक्ति को प्राप्त करता है भागवत धर्म में सारी जरूरतों को न चाहते हुए मुक्ति के लिए धर्म स्थान एवं मुक्ति की कामना के लिए धर्मशील जीवन जीता है वह धर्म भगवत धर्म कहलाता है जैसे पूजा पाठ करते हैं,कथा भागवत इत्यादि

मनुष्य का धर्म क्या है? (Manushya ka Dharm kya hai)

संसार में प्रकृति के द्वारा मनुष्य सबसे बड़ी एवं सबसे खास रचना है मनुष्य को सबसे खास बनाया है इससे बड़ी रचना प्रकृति की कोई नहीं हो सकती इसलिए इनमें बुद्धि का संचार किया है जिनसे वह विचार करते हैं कि सही क्या है गलत क्या है उचित क्या है अनुचित है यदि मनुष्य इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए अपने जीवन को आगे प्रशस्त करता है वह एक धर्मात्मा है मनुष्य का धर्म सबसे बड़ा धर्म है जिसमें मनुष्य इंसानियत के रूप में निखर कर आता है मनुष्य धर्म कहलाता है किसी के प्रति अच्छा व्यवहार करना किसी का भला करना किसी के ऊपर परोपकार करना यह सब मनुष्य धर्म के लक्षण है।

धर्म क्या है गीता के अनुसार(Dharm kya hai Geeta ke anusar)

गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि पूजा पाठ करना एवं साधु बन जाना धर्म नहीं कहलाता धर्म वही है जिस काम के लिए आपको इस पृथ्वी पर जन्म मिला है उसको पूर्ण करने में लगे हैं वह धर्म कहलाता है जैसे सूर्य का धर्म है गर्मी देना बादल का धर्म है बरसात करना उसी प्रकार मानव जीवन का धर्म या लक्ष्य है मोक्ष की प्राप्ति करना। गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि साधन धाम मोक्ष कर द्वारा ताहि भज परलोक संवारा इसका अर्थ यह है कि मनुष्य शरीर मोक्ष प्राप्ति करने के लिए मिला है अगर यह शरीर पाकर तुमने मोक्ष को प्राप्त नहीं किया तो समझो आपका जीवन व्यर्थ गया

जाति और धर्म में क्या अंतर है(jaati aur Dharm mein kya antar hai)

गीता के तेरहवें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि जितने भी शुभ कर्म है जैसे पूजा-पाठ दान संकल्प ध्यान तपस्या यह सभी चीजें मानव मात्र कल्याण के लिए उपलब्ध है और यह गीता भी मानव मात्र कल्याण के लिए उपलब्ध है इसलिए जहां धर्म की प्रधानता होती है वहां जात की कोई विशेष रूप से बड़ा नहीं किया जाता है लेकिन जहां जाति की विशेषता होती है वहां धर्म का लोप हो जाता है जाति केवल धर्म के नाम पर कुकर्म कराने के अलावा और कोई काम नहीं करता हम सब को भी यही सोचना चाहिए कि हम जाति के लिए नहीं बल्कि धर्म के लिए आगे बढ़े 

धर्म का आधार क्या है?(Dharm ka Aadhar kya hai)

धर्म का आधार 5 चीजें हैं प्रेम न्याय समर्पण धैर्य और विश्वास यदि किसी व्यक्ति के स्वभाव में यह 5 गुण देखने को मिलते हैं तो वह बहुत बड़ा धर्मात्मा है धर्म पांच अंगों से अपना कार्य करते हैं उनके कार्य शैली बहुत ही अच्छी है धर्म में यह पांच चीजें अनिवार्य है यदि इनमें से एक भी चीज का लोप हो जाता है तो वह  धर्म नहीं कहलाएगा

सबसे बड़ा धर्म क्या होता है?(sabse bada Dharm kya hota hai)

महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद युधिष्ठिर अपने पांचों भाइयों एवं कृष्ण को साथ में लेकर कुरुक्षेत्र के मैदान में आए जहां पर भीष्म पितामह बाणों की शैया पर लेटे हुए थे युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह से प्रश्न किया कि सबसे बड़ा धर्म क्या होता है तब भीष्म पितामह ने इसका उत्तर देते हुए कहा कि जो व्यवहार दूसरों का अपने प्रति अच्छा ना लगे वह व्यवहार हमें  दूसरों के प्रति करना करना छोड़ देना चाहिए यही संसार का सबसे बड़ा धर्म है उदाहरण के तौर पर यदि तुम्हें गाली सुनना अच्छा नहीं लगता है तो तुम भी किसी दूसरे को गाली देना छोड़ दो यही संसार का सबसे बड़ा धर्म है

जीवन में धर्म का महत्व(jivan mein Dharm ka mahatva)

भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि धर्मो रक्षति रक्षिता जब आप अपने धर्म की रक्षा करोगे तो धर्म आप की भी रक्षा करेगा इसलिए अपने धर्म के प्रति सदैव आगे रहना चाहिए हमें जातिवाद नहीं बल्कि राष्ट्रवाद एवं अपने धर्म के प्रचार प्रसार के लिए एक होकर एवं अखंड हिंदुत्व को साथ में लेकर आगे बढ़ना होगा तभी अपने धर्म के निरूपण में अभिषेक कर पाएंगे

धर्म के लक्षण या विशेषताएं(Dharm ke lakshan ya visheshtaen)

धर्म के कुछ लक्षण है जिनके निरूपन से धर्म का क्षेत्र गतिशील रहता है यह लक्षण निम्नलिखित है

ईश्वर में विश्वास

जो व्यक्ति धर्मशील होगा वह आस्था पर बहुत ही ज्यादा विश्वास करता है वह ईश्वर के गुण एवं चरित्रों को हमेशा ध्यान में रखते हुए अपने जीवन के गाड़ी को आगे बढ़ाता है और हमेशा ईश्वर के बताए गए रास्ते पर चलकर अपने जीवन को संयमित और अनुभ से जीकर जीवन की विवेचना को समझता है धर्म का पहला लक्षण एवं विशेषता यही है कि वह श्रद्धावान एवं ईश्वर में विश्वास रखने वाला होता है क्योंकि गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि श्रद्धा वान लभते ज्ञानम् यदि किसी के मन में श्रद्धा का भाव है उसे पूर्णतया ज्ञान हो गया है इस संसार रूपी सागर का इसलिए वह व्यक्ति सदैव परमात्मा में आस्था एवं विश्वास बनाए रखता है और अपनी जीवन को बहुत सुदृढ़ता एवम एकता के साथ जीता है

अलौकिक चरित्र

धर्मज्ञ में सदा से ही एक अलौकिक रूपों का विवेचन करते आया है धर्मशील व्यक्ति सांसारिक समाज से अलग होकर पारलौकिक मार्ग की ओर अग्रसर होते हैं और उनका तेज एवं प्रकाश अन्य पुरुषों के तुलना में बहुत ही ज्यादा तेजवान एवं धैर्यवान होते हैं उनके अंदर धैर्य एवं विवेक का भरपूर भंडार पाया जाता है और वह स्वाभाविक दृष्टि से देवतुल्य होते हैं

संयमित दृष्टिकोण

धर्मशील व्यक्ति का दृष्टिकोण बहुत ही संयमित और बहुत ही अनुयाई होता है जिसके सभी व्यक्ति मुरीद होते हैं इनका दृष्टि अपने एवं दूसरों के प्रति सदैव बराबर की भावना रखते हुए संबंध एवं विचारों को स्पष्ट रूप से बातचीत करते हुए जीवन के पथ पर अग्रसर रहते हैं

पवित्र मन

धर्म का चौथा लक्षण या है कि पवित्रता में ज्यादा संयमित रहना एवं पवित्रता में ज्यादा विश्वास रखना पवित्र व्यक्ति वही है जो धर्मशील है अन्यथा नहाने से कोई पवित्र नहीं होता यदि मन का मैल नहीं गया है तो नहाने से या ऊपरी सिंगार करने से धर्म का कोई अर्थ नहीं निकलता है

डिस्क्लेमर 

दोस्तों हमें उम्मीद है कि आप तो धर्म के विषय में यह जानकारी बहुत ही अच्छी एवं पसंद आई होगी ऐसे ही और ज्ञानवर्धक आर्टिकल पढ़ने के लिए हमारे वेबसाइट के साथ बने रहे और यदि आर्टिकल में कोई स्पेलिंग मिस्टेक या कोई त्रुटि रह गई है तो हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं हम उसे सुधारने की पूरी कोशिश करेंगे धन्यवाद

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