संस्था का अर्थ which means of sanstha
संस्था की परिभाषा definition of Sanstha
संस्था को और बेहतर ढंग से समझने के लिए कुछ समाजशास्त्रीय विद्वानों ने अपने अपने हिसाब से संस्था को परिभाषित किया है जो निम्नलिखित है।
मैकईवर एवं पेज के अनुसार-“संस्था समाज में होने वाली कार्य प्रणालियों का एक गठन है जिसके द्वारा समूह के सामूहिक तत्वों का नियमन किया जाता है”।
गार्ड्स के अनुसार-“संस्था समाज का एक ऐसा सामाजिक ढांचा होता है जो व्यक्तियों की जरूरतों के लिए बहुत ही सुदृढ़ और सुव्यवस्थित रूप से गठित किया जाने वाला नियम होता है”।
गिलिन और गिलीन के अनुसार-“संस्था समाज में प्रत्येक व्यक्तियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए बनाया जाने वाला एक ऐसा संगठन है जिसमें प्रत्येक व्यक्तियों के विचार संस्कृति और सुरक्षा का भी नियमन किया जाता है। उनके अंतर्गत लोगों के विचार और कार्य करने की तौर तरीके को संचालित किया जाता है”।
रॉस के अनुसार-“सामाजिक संस्थाएं संगठित मानवीय संबंधों की वह व्यवस्था हैं जो सामान्य इच्छा द्वारा स्थापित या स्वीकृत होती हैं।”
मैरिल और एलरिज के अनुसार,” सामाजिक संस्थाएं आचरण के वे प्रतिमान हैं, जो मनुष्य को मुख्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए निर्मित हुए हैं”।
उपरोक्त परिभाषा में आपने अनेक समाजशास्त्रीय विद्वानों के विचार तथा उनके कथन को स्पष्ट रूप से पढा, अतः इन सभी विद्वानों के परिभाषा ओं को पढ़ने के पश्चात सरल शब्दों में हम आपको बताने की “संस्था एक प्रकार का ऐसा कानून व्यवस्था है जिसके अंतर्गत प्रत्येक व्यक्तियों के विचार संस्कृति और कार्यों को सम्मिलित किया जाता है इनका प्रमुख उद्देश्य समाज में रहने वाले व्यक्तियों के अभीष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बनाया जाता है जो बहुत ही समुचित पूर्ण तथा सुदृढ़ होते हैं और यह काफी ज्यादा स्थाई होते हैं। यह हमारे समाज के अनेक प्रकार की बुराइयों और समाज के प्रतिकूल व्यवहार करने वाले विचारों को बड़ी ही सरलता से कंट्रोल कर सकते हैं”हैं और
संस्था का महत्व worth of Sanstha
हम समाज में रहते हैं तथा समाज में प्रत्येक व्यक्ति अलग-अलग विचारों अलग-अलग संस्कृति में पला बढ़ा हुआ होता है। इस प्रकार से प्रत्येक व्यक्ति समाज में अलग-अलग महत्व और पद प्राप्त करता है। समाज में रहकर प्रत्येक व्यक्ति को एक दूसरे से आवश्यकता जरूर होती रहती है इसलिए इन सभी को नियंत्रित करने के लिए संस्था का गठन किया जाता है संस्था हमारे सामाजिक जीवन में एक विशिष्ट महत्त्व रखता है। अतः उन्हें महत्त्व को हम आपके समक्ष बहुत ही समुचित पूर्ण ढंग से बताने वाले हैं जिसे आप लोग ध्यान से पढ़ें मैं आप लोगों को संस्था के कौन-कौन से महत्व है इन को बड़ी ही सरल शब्दों में बताऊंगा जिससे बड़ी आसानी से आप लोगों को समझ में आ जाएगा।
1-संस्कृति का रक्षक Sanskriti ka rakshak
संस्था हमारे समाज के संस्कृति और सभ्यता को बनाए रखने का कार्य करती है। क्योंकि संस्थाओं के द्वारा संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ले जाने के लिए अनेक प्रकार के कानून और नियम पारित करती है जिसके द्वारा हमारी संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाती रहती है और संस्कृति की स्थिरता बनी हुई रहती है। इस प्रकार से पीढ़ी दर पीढ़ी जीवन पर्यंत हमारी संस्कृति की रक्षा होती रहती है।
2-सामाजिक विघटन को रोकने में सहायक samajik vighatan ko rokne mein sahayak
संस्था हमारे समाज में एक दूसरे के प्रति प्रेम भावना तथा जरूरतों को पूरा करने के लिए संगठित करने की एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा समाज में होने वाले दुर्व्यवहार जैसे अपराध शोषण स्त्रियों के प्रति गलत विचार इत्यादि तमाम अपराध जो समाज के विरुद्ध होते हैं और सामाजिक विघटन को बढ़ावा देते हैं। संस्था अपनी संगठित नियमों के अनुसार इन सभी अपराधों को रोकने में काफी ज्यादा सहायक होती है इसलिए विघटन की स्थिति कम से कम होते होने की संभावना होती है।इस प्रकार से स्वस्थ हमारे समाज में होने वाली सामाजिक विघटन को रोकने में हमारी काफी ज्यादा सहायता करती है।
3-आवश्यकताओं की पूर्ति avashyakta ki purti
समाज में रहकर हमें एक दूसरे की आवश्यकता अवश्य पढ़ती है इसलिए समाज में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्तव्य के प्रति जिम्मेदार होना चाहिए ताकि सामाजिक व्यवस्था बनी रहे और किसी भी व्यक्ति को किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना ना करना पड़े। इन सभी नियमों को नियंत्रित करने के लिए संस्था की स्थापना की जाती है जो अपने सुदृढ़ और समाज के अनुकूल होने वाले नियम और कानून को संस्था के रूप में समाज में लागू करती है जिसका पालन प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी होती है अतः इन जिम्मेदारियों को प्रत्येक व्यक्ति को अवश्य उठाना पड़ता है क्योंकि यदि किसी व्यक्ति के पास घर बनाने का हुनर नहीं है परंतु पैसा है तो वह बड़ी ही आसानी से किसी मिस्त्री को पैसे देकर अपना घर बनवा सकता है इस प्रकार से दोनों व्यक्तियों की आवश्यकता की पूर्ति बड़ी ही आसानी से हो जाती है
4-सामाजिक परिवर्तन में सहायक samajik Parivartan mein sahayak
समाज में कुछ नियम ऐसे भी होते हैं जो काफी लंबे समय तक चलते रहते हैं और उस नियम के अंतर्गत कार्य करते करते प्रत्येक व्यक्ति बोर हो जाता है और वह कुछ अलग करने की सोचने लगता है क्योंकि समाज में परिवर्तन होना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि समय अनुसार समाज के अनुकूल होने वाले नियमों को समाज में लागू करना संस्था का कार्य होता है इस प्रकार से संस्था के द्वारा समाज में परिवर्तन हो जाता है जिसके द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को कोई भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है और उनका जीवन सरल और आसान बनाने का कार्य संस्था करता है।
संस्था की विशेषताएं sanstha ki visheshtaen
समाज में रहकर हमें अनेक प्रकार के सामाजिक नियमों और कानूनों के नियंत्रण में रहकर अपना जीवन व्यतीत करना होता है। नियमों का उल्लंघन करने के परिणाम स्वरूप अनेक प्रकार के दंड को भुगतना पड़ता है जिन्हें समाज द्वारा पूर्ण मान्यता प्राप्त होता है। उसी प्रकार समाज में किसी विशिष्ट उद्देश्य या समान उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बनाए जाने वाले समूह समुदाय अथवा समिति को संचालित करने के लिए संस्था का निर्माण किया जाता है जो उस समुदाय या समिति को संचालित करने के लिए एक व्यवस्थित ढांचा है जो उस समय में रहने वाले प्रत्येक सदस्य के हितों को ध्यान में रखते हुए बनाया जाता है जिसके अंतर्गत संस्कृति तथा लोगों के विचारों का नियमन किया जाता है। इस प्रकार से समाज में संस्था की अपनी कई विशेषताएं होती हैं जो उसे सुदृढ़ और काफी ज्यादा मजबूत बनाने का कार्य करती है।
1-मजबूत ढांचा majbut dhancha
संस्था एक कानून और नियमों का मजबूत ढांचा होता है जिसके अंतर्गत अनेक प्रकार के नियम कानून जो समाज के और समुदाय के हितों के लिए बनाए जाते हैं। एक छात्र ज्यादा मजबूत खर्चा होता है जिसको खंडित करने की क्षमता समुदाय अथवा समिति में रहने वाले किसी भी सदस्य में नहीं होती है संस्था के नियमों और कानूनों में सिर्फ कुछ परिवर्तन किया जा सकता है यदि अगर कोई नियम या कानून समाज अथवा समुदाय को नुकसान पहुंचाने का कार्य करता है ऐसी स्थिति में उस नियम को बदलने की अनुमति संस्था के अंतर्गत दी जाती है।
2-उद्देश्यों की पूर्ति uddeshy ki purti
संस्था का निर्माण समुदाय और समिति सामान्य और विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बनाया जाता है इसलिए संस्थाओं का गठन करते समय प्रत्येक व्यक्तियों के उद्देश्यों की पूर्ति को ध्यान में रखते हुए नियम और कानूनों को बनाया जाता है जिसके द्वारा समाज के समुदाय तथा समिति के अंतर्गत रहने वाले किसी भी सदस्य को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए परेशानी का सामना ना करना पड़े अतः इस परिस्थिति में संस्था अपने नियमों और कानूनों के अंतर्गत उद्देश्यों की पूर्ति करता है जिसका उदाहरण आपको मैं ऊपर के पोस्ट में बता चुका हूं और शायद आपने पढ़ा भी होगा।
3-सामूहिक स्वीकृति samuhik swikriti
जब किसी समूह अथवा समिति में संस्था को लागू किया जाता है उनमें सभी सदस्यों की सामान्य और विशिष्ट उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए संस्था का निर्माण किया जाता है इसलिए समूह में कार्य करने वाले प्रत्येक व्यक्तियों की पूर्ण स्वीकृति होने के पश्चात इन संस्थाओं को लागू किया जाता है। इसलिए संस्थाओं को पूर्ण रूप से सामूहिक स्वीकृति तथा अनुमति प्राप्त होती है।
4-प्रतीक prateek
प्रत्येक संस्था का अपना अपना एक प्रतीक होता है जिससे अंग्रेजी में लोगों को भी कहा जाता है आपने देखा होगा कि इंडियन बैंक का प्रतीक किस तरह का होता है पंजाब नेशनल बैंक का प्रतीक किस तरह से होता है हीरो की कंपनी का प्रतीक किस तरह का होता है इस प्रकार से प्रत्येक समुदाय अथवा समिति का अपना एक प्रतीक होता है क्योंकि हमारे समाज में अनेक प्रकार के समुदाय और समिति पाए जाते हैं जिनमें अनेक संस्थाएं होती हैं इसलिए प्रत्येक संस्थाओं का अपना अपना प्रतीक होता है। संस्थाओं के प्रतीक भौतिक तथा भौतिक नहीं हो सकते हैं। जैसे विवाह का प्रतीक मंगलसूत्र होता है। परिवार का प्रतीक उसका खानदान का पूर्वज होता है। इस प्रकार से प्रत्येक संस्थाओं का अपना एक प्रतीक होता है जिनके द्वारा उनके सदस्य अपने संस्थाओं की पहचान कर पाते हैं।
5-संस्थाएं अस्थाई होती हैं sansthayen sthai hoti hai
निष्कर्ष conclusion
संपूर्ण पोस्ट पढ़ने के पश्चात यह निष्कर्ष निकलता है कि समाज में दो तरह की आवश्यकताएं होती हैं पहला विशिष्ट आवश्यकताएं दूसरा सामान्य आवश्यकताएं। समाज में रहते हुए हमें एक दूसरे की आवश्यकताओं की पूर्ति करना होता है इसलिए सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समुदाय की स्थापना की जाती है तथा विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समिति की स्थापना की जाती है जिनके अंतर्गत कुछ ऐसे नियम बनाए जाते हैं। इन्हीं नियमों और कानूनों के ढांचा को संस्था कहा जाता है। जो समुदाय और समिति के लिए काफी ज्यादा मददगार होते हैं और उनको संचालित करने में काफी ज्यादा योगदान होता है यह संस्थाएं संस्कृति और सुरक्षा व्यवस्था को कायम रखने का कार्य करती है। संस्थान के द्वारा हमें समाज में अनेक प्रकार की मदद मिलती है और अनेक विशेषताएं हैं जो इसे पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित करने में मदद करती हैं।
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